कुछ ज़ख्म ऐसे होते हैं जो दिखाई नहीं देते, लेकिन दिल के भीतर गहराई तक बस जाते हैं। वही अनकहे दर्द और टूटे एहसास शब्दों में ढलते हैं Zakham Shayari In Hindi के रूप में। यहाँ आपको मिलेंगी बीते कल की याद दिलाने वाली Purane Zakham Shayari, दिल को चीर देने वाली Dil Pe Zakham Shayar, और रूह तक असर करने वाली Gahre Zakhm Shayari। ये शायरियाँ उन घावों की कहानी कहती हैं जो समय के साथ भरते नहीं, बल्कि याद बनकर रह जाते हैं।
Zakham Shayari in Hindi
तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं
दाग़ दुनिया ने दिए ज़ख़्म ज़माने से मिले
हम को तोहफ़े ये तुम्हें दोस्त बनाने से मिले
जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने भर दिए
तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया

हम तो समझे थे कि इक ज़ख़्म है भर जाएगा
क्या ख़बर थी कि रग-ए-जाँ में उतर जाएगा
ज़ख़्म लगा कर उस का भी कुछ हाथ खुला
मैं भी धोका खा कर कुछ चालाक हुआ
कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है
ज़िंदगी एक नज़्म लगती है
‘मुसहफ़ी’ हम तो ये समझे थे कि होगा कोई ज़ख़्म
तेरे दिल में तो बहुत काम रफ़ू का निकला
लोग काँटों से बच के चलते हैं
मैं ने फूलों से ज़ख़्म खाए हैं
ज़ख़्म झेले दाग़ भी खाए बहुत
दिल लगा कर हम तो पछताए बहुत
दुआएँ याद करा दी गई थीं बचपन में
सो ज़ख़्म खाते रहे और दुआ दिए गए हम
Purane Zakham Shayari
भर जाएँगे जब ज़ख़्म तो आऊँगा दोबारा
मैं हार गया जंग मगर दिल नहीं हारा
हमारे ज़ख़्म-ए-तमन्ना पुराने हो गए हैं
कि उस गली में गए अब ज़माने हो गए हैं

किसी के ज़ख़्म पर चाहत से पट्टी कौन बाँधेगा
अगर बहनें नहीं होंगी तो राखी कौन बाँधेगा
ज़ख़्म कहते हैं दिल का गहना है
दर्द दिल का लिबास होता है
इक नया ज़ख़्म मिला एक नई उम्र मिली
जब किसी शहर में कुछ यार पुराने से मिले
कहाँ मिलेगी मिसाल मेरी सितमगरी की
कि मैं गुलाबों के ज़ख़्म काँटों से सी रहा हूँ
फुलाँ से थी ग़ज़ल बेहतर फुलाँ की
फुलाँ के ज़ख़्म अच्छे थे फुलाँ से
वक़्त हर ज़ख़्म का मरहम तो नहीं बन सकता
दर्द कुछ होते हैं ता-उम्र रुलाने वाले
मैं ज़ख़्म खा के गिरा था कि थाम उस ने लिया
मुआफ़ कर के मुझे इंतिक़ाम उस ने लिया
लोग देते रहे क्या क्या न दिलासे मुझ को
ज़ख़्म गहरा ही सही ज़ख़्म है भर जाएगा
तुझे क्या ख़बर मह-ओ-साल ने हमें कैसे ज़ख़्म दिए यहाँ
तिरी यादगार थी इक ख़लिश तिरी यादगार भी अब नहीं
दाग़ दुनिया ने दिए ज़ख़्म ज़माने से मिले
हम को तोहफ़े ये तुम्हें दोस्त बनाने से मिले
जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने भर दिए
तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया
कहाँ अब जादा-ए-ख़ुर्रम में सर-सब्ज़ाना जाना है
कहूँ तो क्या कहूँ मेरा ये ज़ख़्म-ए-जावेदाना है
Dil Pe Zakham Shayar
हम तो समझे थे कि इक ज़ख़्म है भर जाएगा
क्या ख़बर थी कि रग-ए-जाँ में उतर जाएगा
इक ऐसा ज़ख़्म-नुमा दिल क़रीब से गुज़रा
दिल उस को देख के चीख़ा ठहर लगेगा नहीं
मुरत्तब कर लिया है कुल्लियात-ए-ज़ख़्म अगर अपना
तो फिर ‘एहसास-जी’ इस की इशाअ’त क्यूँ नहीं करते

ज़ख़्म गर दब गया लहू न थमा
काम गर रुक गया रवा न हुआ
तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं
जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने भर दिए
तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया
ज़ख़्म लगा कर उस का भी कुछ हाथ खुला
मैं भी धोका खा कर कुछ चालाक हुआ
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चारासाज़ों से अलग है मिरा मेआ’र कि मैं
ज़ख़्म खाऊँगा तो कुछ और सँवर जाऊँगा
कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है
ज़िंदगी एक नज़्म लगती है
बम घरों पर गिरें कि सरहद पर
रूह-ए-ता’मीर ज़ख़्म खाती है
Gahre Zakhm Shayari
ये ज़ख़्म गुलज़ार बन गए हैं
ये आह-ए-सोज़ाँ घटा बनी है
मैं ने चाहा था ज़ख़्म भर जाएँ
ज़ख़्म ही ज़ख़्म भर गए मुझ में
दाग़ दुनिया ने दिए ज़ख़्म ज़माने से मिले
हम को तोहफ़े ये तुम्हें दोस्त बनाने से मिले
न अब वो यादों का चढ़ता दरिया न फ़ुर्सतों की उदास बरखा
यूँही ज़रा सी कसक है दिल में जो ज़ख़्म गहरा था भर गया वो
उस का जो हाल है वही जाने
अपना तो ज़ख़्म भर गया कब का
‘मुसहफ़ी’ हम तो ये समझे थे कि होगा कोई ज़ख़्म
तेरे दिल में तो बहुत काम रफ़ू का निकला
फिर कुछ इक दिल को बे-क़रारी है
सीना जूया-ए-ज़ख़्म-ए-कारी है
ज़ख़्म-ए-उम्मीद भर गया कब का
क़ैस तो अपने घर गया कब का
हमारे ज़ख़्म-ए-तमन्ना पुराने हो गए हैं
कि उस गली में गए अब ज़माने हो गए हैं
वो ज़ख़्म का दर्द हो
कि वो लम्स का हो जादू
हाथ ही तेग़-आज़मा का काम से जाता रहा
दिल पे इक लगने न पाया ज़ख़्म-ए-कारी हाए हाए
निशान-ए-हिज्र भी है वस्ल की निशानियों में
कहाँ का ज़ख़्म कहाँ पर दिखाई देने लगा
फुलाँ से थी ग़ज़ल बेहतर फुलाँ की
फुलाँ के ज़ख़्म अच्छे थे फुलाँ से
लोग काँटों से बच के चलते हैं
मैं ने फूलों से ज़ख़्म खाए हैं
Zakhm Shayari In Hindi
ज़ख़्म झेले दाग़ भी खाए बहुत
दिल लगा कर हम तो पछताए बहुत
किस फ़ुर्सत-ए-विसाल पे है गुल को अंदलीब
ज़ख़्म-ए-फ़िराक़ ख़ंदा-ए-बे-जा कहें जिसे
नई रुतों में दुखों के भी सिलसिले हैं नए
वो ज़ख़्म ताज़ा हुए हैं जो भरने वाले थे
चारा-गर यूँ तो बहुत हैं मगर ऐ जान-ए-‘फ़राज़’
जुज़ तिरे और कोई ज़ख़्म न जाने मेरे
जो ज़ख़्म कि सुर्ख़ गुलाब हुए, जो दाग़ कि बदर-ए-मुनीर हुए
इस तरहा से कब तक जीना है, मैं हार गया इस जीने से
चारा-गर यूँ तो बहुत हैं मगर ऐ जान-ए-‘फ़राज़’
जुज़ तिरे और कोई ज़ख़्म न जाने मेरे
इक ज़ख़्म मुझ को चाहिए मेरे मिज़ाज का
या’नी हरा भी चाहिए गहरा भी चाहिए
पढ़ पढ़ के वो दम करते हैं कुछ हाथ पर अपने
हँस हँस के मिरे ज़ख़्म-ए-जिगर देख रहे हैं
बिछड़ा है जो इक बार तो मिलते नहीं देखा
इस ज़ख़्म को हम ने कभी सिलते नहीं देखा
कोई रंग तो दो मिरे चेहरे को
फिर ज़ख़्म अगर महकाओ तो क्या
हम ने इलाज-ए-ज़ख़्म-ए-दिल तो ढूँड लिया लेकिन
गहरे ज़ख़्मों को भरने में वक़्त तो लगता है
2 Line Zakhm Shayari
वक़्त तिरी जुदाई का इतना तवील हो गया
दिल में तिरे विसाल के जितने थे ज़ख़्म भर गए
डर रहा था कि कहीं ज़ख़्म न भर जाएँ मिरे
और तू मुट्ठियाँ भर भर के नमक लाई थी
अगले वक़्तों के ज़ख़्म भरने लगे
आज फिर कोई भूल की जाए

है जो पुर-ख़ूँ तुम्हारा अक्स-ए-ख़याल
ज़ख़्म आए कहाँ कहाँ जानाँ
वो ज़ख़्म भर गया अर्सा हुआ मगर अब तक
ज़रा सा दर्द ज़रा सा निशान बाक़ी है
शौक़ का रंग बुझ गया याद के ज़ख़्म भर गए
क्या मिरी फ़स्ल हो चुकी क्या मिरे दिन गुज़र गए
ज़ख़्म दिल के फिर हरे करने लगीं
बदलियाँ बरखा रुतें पुरवाइयाँ
अब तो ये आरज़ू है कि वो ज़ख़्म खाइए
ता-ज़िंदगी ये दिल न कोई आरज़ू करे
नज़र लगे न कहीं उस के दस्त-ओ-बाज़ू को
ये लोग क्यूँ मिरे ज़ख़्म-ए-जिगर को देखते हैं
अब जा के कुछ खुला हुनर-ए-नाख़ुन-ए-जुनूँ
ज़ख़्म-ए-जिगर हुए लब-ओ-रुख़्सार की तरह
वो यार हों या महबूब मिरे या कभी कभी मिलने वाले
इक लज़्ज़त सब के मिलने में वो ज़ख़्म दिया या प्यार दिया
ज़ख़्म झेले दाग़ भी खाए बहुत
दिल लगा कर हम तो पछताए बहुत
हर आन इक जुदाई है ख़ुद अपने आप से
हर आन का है ज़ख़्म जो हर आन खाइए
इक उम्र चाहिए कि गवारा हो नीश-ए-इश्क़
रक्खी है आज लज़्ज़त-ए-ज़ख़्म-ए-जिगर कहाँ
दुआएँ याद करा दी गई थीं बचपन में
सो ज़ख़्म खाते रहे और दुआ दिए गए हम
ये मो’जिज़ा भी मोहब्बत कभी दिखाए मुझे
कि संग तुझ पे गिरे और ज़ख़्म आए मुझे
भर जाएँगे जब ज़ख़्म तो आऊँगा दोबारा
मैं हार गया जंग मगर दिल नहीं हारा
Kuch Zakhm Shayari
कहाँ मिलेगी मिसाल मेरी सितमगरी की
कि मैं गुलाबों के ज़ख़्म काँटों से सी रहा हूँ
चलो कि आज सभी पाएमाल रूहों से
कहें कि अपने हर इक ज़ख़्म को ज़बाँ कर लें
दोस्त ग़म-ख़्वारी में मेरी सई फ़रमावेंगे क्या
ज़ख़्म के भरते तलक नाख़ुन न बढ़ जावेंगे क्या
ये महताब ये रात की पेशानी का घाव
ऐसा ज़ख़्म तो दिल पर खाया जा सकता है
हर ज़ख़्म-ए-जिगर दावर-ए-महशर से हमारा
इंसाफ़-तलब है तिरी बेदाद-गरी का
हमारे ज़ख़्म-ए-तमन्ना पुराने हो गए हैं
कि उस गली में गए अब ज़माने हो गए हैं
ये ज़ख़्म ज़ख़्म मनाज़िर लहू लहू चेहरे
कहाँ चले गए वो लोग हँसते गाते हुए
शक़ हो गया है सीना ख़ुशा लज़्ज़त-ए-फ़राग़
तकलीफ़-ए-पर्दा-दारी-ए-ज़ख़्म-ए-जिगर गई
मैं चाहता हूँ कि मैं ज़ख़्म ज़ख़्म हो जाऊँ
और इस तरह कि कभी ख़ौफ़-ए-इंदिमाल न हो
नश्तर-ब-दस्त शहर से चारागरी की लौ
ऐ ज़ख़्म-ए-बे-कसी तुझे भर जाना चाहिए
Zindagi Zakhm Shayari
ज़ख़्म-ए-दिल जुर्म नहीं तोड़ भी दे मोहर-ए-सुकूत
जो तुझे जानते हैं उन से छुपाता क्या है
एक मलाल की गर्द समेटे मैं ने ख़ुद को पार किया
कैसे कैसे वस्ल गुज़ारे हिज्र का ज़ख़्म छुपाने में
किसी को ज़ख़्म दिए हैं किसी को फूल दिए
बुरी हो चाहे भली हो मगर ख़बर में रहो

अब तिरी याद से वहशत नहीं होती मुझ को
ज़ख़्म खुलते हैं अज़िय्यत नहीं होती मुझ को
ज़ख़्म कहते हैं दिल का गहना है
दर्द दिल का लिबास होता है
हिज्र ऐसा हो कि चेहरे पे नज़र आ जाए
ज़ख़्म ऐसा हो कि दिख जाए दिखाना न पड़े
फेरी न थी जो पुश्त-ए-मुबारक दम-ए-मसाफ़
थे दो हज़ार ज़ख़्म फ़क़त सर से ता-ब-नाफ़
शोर-ए-पंद-ए-नासेह ने ज़ख़्म पर नमक छिड़का
आप से कोई पूछे तुम ने क्या मज़ा पाया
ये और बात है तुझ से गिला नहीं करते
जो ज़ख़्म तू ने दिए हैं भरा नहीं करते
देख दिल के निगार-ख़ाने में
ज़ख़्म-ए-पिन्हाँ की है निशानी भी
Conclusion
उम्मीद है कि यह भावनात्मक संग्रह Zakham Shayari In Hindi आपके भीतर छुपे दर्द को शब्द देने में मदद करेगा। ज़िंदगी में मिले हर ज़ख्म की अपनी एक कहानी होती है। इसी सच्चाई को दर्शाती हैं Apno Ke Diye Zakhm Shayari, जीवन की कठोरता बताने वाली Zindagi Zakhm Shayari, और एहसासों से भरी Kuch Zakhm Shayari। ये Gehre Zakhm Shayari और Aansoo Zakhm Shayari उस दर्द को बयां करती हैं जिसे आँसू भी पूरी तरह कह नहीं पाते।







