Nearly 70% of relationships face betrayal at some point? In a world where trust is often taken for granted, the pain of matlabi rishte dhoka can leave deep scars. This article explores the poignant realm of betrayal through shayari, capturing the emotions and experiences that accompany such heartache.
By the end, you’ll not only understand the nuances of these deceptive relationships but also find solace in words that resonate with your feelings.
Matlabi Rishte Dhoka Shayari
No 1:
जितना यार के करम पर भरोसा हुआ मुझे
उतना मेरे यार ने धोखा दिया मुझे.
No 2:
सिर्फ धोखा ही दे सके वो
आखिर उनकी औकात इतनी ही थी।.
No 3:
किसने वफा के नाम पर धोखा दिया मुझे
किससे कहूँ कि मेरा गुनहगार कौन है।.
No 4:

भरोसा जितना कीमती होता है
धोखा उतना ही महंगा हो जाता है।.
No 5:
वो मासूम चेहरा मेरे ज़हन से निकलता ही नहीं
दिल को कैसे समझाऊं कि धोकेबाज़ था वो।.
No 6:
वो शख्स बड़ा मासूम था मोहब्बत से पहले
पता नहीं क्यों दिल में बसते ही धोकेबाज़ हो गया।.
No 7:
पहले इश्क, फिर धोखा, फिर बेवफाई
बड़ी तरकीब से एक इश्क ने तबाह कर दिया।.
No 8:
तुमने हमें धोखा दिया मगर तुम्हें प्यार मिले
हमसे भी ज्यादा दीवाना तुम्हें कोई यार मिले।.
No 9:
यकीन था कि तुम धोखा दोगे मुझे
खुशी है कि तुम उम्मीद पर खरे उतरे।.
No 10:
धोके की सब राहें किताबों में लिख दी हैं
प्यार की कहानियों में कोई और हकीकत होती है।.
No 11:
कहीं धोके में आँखें हैं तो
कहीं आँखों में धोका है।.
No 12:
उसके वादों का ज़िक्र मत करो
मैं शर्मिंदा हूँ भरोसा कर के।.
Rishte Matlabi Shayari
No 1:
अपने दुपट्टे से दीजिए हमें फांसी, जानां
रुकें जो सांसें तो कुछ-कुछ सुरूर भी आए।.
No 2:
जिन पर आप आँखें बंद कर के भरोसा करें
अक्सर वही आपकी आँखें खोल देते हैं।.
No 3:
जिसकी चोट पर हमने मरहम लगाए
हमारे लिए फिर उसने नए खंजर मंगाए।.
No 4:

दिल के अच्छे लोगों की कदर करना हमेशा तुम
शकल की आड़ में अक्सर ही धोकेबाज़ होते हैं।.
No 5:
वैर उस कदर شديد था कि दुश्मन ही कर सके
चेहरा मगर ज़रूर किसी आशना का था।.
No 6:
दुश्मनी में कहाँ वो होते हैं
दोस्ती में जो वार मुमकिन हैं।.
No 7:
गैरों से तो चलो शिकवा कर लेंगे
मगर जो किया अपनों ने, उनका क्या.
No 8:
हर शख्स तो फरेब नहीं देता
मगर अब भरोसा ज़े़ब नहीं देता।.
No 9:
शिकायत मौत से नहीं अपनों से थी
जरा सी आंख क्या लगी, वो कब्र खोदने लगे।
No 10:
मजबूरी के नाम पर दामन छुड़ा गए
वो लोग जिनकी बातों में दावे हजार थे।.
No 11:
मुझे मंज़िलों का शऊर था, मुझे रास्तों ने थका दिया
कभी जिन लोगों पर घमंड था, उन्होंने ही दगा दिया।.
No 12:
तेरे ख़लूस ने बर्बाद कर दिया
फरेब खाते तो अब तक संभल गए होते।.
No 13:
ग़रज़ की दोस्ती थी, मतलब का ज़माना था
दिल में दुश्मनी थी, दोस्ती तो बहाना था।.
Matlabi Rishtedar Shayari
No 1:
महफिल में चल रही थी हमारी कत्ल की तैयारी
हम आए तो बोले, बहुत लंबी उम्र है तुम्हारी।.
No 2:
ताज्जुब है कि इश्क़ और आशिकी से
अभी कुछ लोग धोखा खा रहे हैं।.
No 3:
अब भी बाकी है तेरे दिल में थोड़ा सा ख़लूस
इससे पहले भी हमें यही धोखा हुआ।.
No 4:

मोहब्बत कर के देखी है, मोहब्बत साफ धोखा है
ये सब कहने की बातें हैं, कौन किसी का होता है।.
No 5:
रोज़ रोते हुए कहती है, ये ज़िंदगी मुझसे
सिर्फ एक धोकेबाज़ के खातिर मुझे यूँ बर्बाद न कर।.
No 6:
साथ निभाना तुम्हारे लिए आसान न था
तुमने धोखा देकर मुझे बदनाम कर दिया।.
No 7:
धोखा तुमने मुझे क्यों दिया
प्यार तो तुमने सच्चा किया था।.
No 8:
तुमने मुझे अचानक कुछ ऐसा दर्द दे दिया
धोके का तोहफा मेरे दिल को दे दिया।.
No 9:
दिल के दर्द को दिखाना बड़ा मुश्किल है
धोखा खा कर बताना बड़ा मुश्किल है।.
No 10:
धोखा खा कर भी हम ज़िंदा हैं
तेरे दर्द के साथ भी हम ज़िंदा हैं।.
No 11:
जो इन मासूम आँखों ने दिया
वो धोके हम आज तक खा रहे हैं।.
No 12:
कमबख्त दिल को अगर इश्क़ में लगाओगे
लिख के ले लो, धोखा जरूर पाओगे।.
No 13:
दिल तो पहली बार ही टूटा था
बाद में तो उसने ज़िद कर ली थी धोखा खाने की।.
No 14:
कौन है इस जहाँ में जिसे धोखा नहीं मिला
शायद वही है ईमानदार जिसे मौका नहीं मिला।.
Rishtedar Shayari in Hindi
No 1:
धोके की राहों में प्यार का रंग उड़ जाता है
दिल की बातों में कभी हकीकत छिप जाती है।.
No 2:
धोके की बातों का आँखों की गहराई होती है
दिल की तल्खियाँ कभी-कभी मुस्करा देती हैं।.
No 3:
धोके की राहों में ख्वाब तोड़ जाते हैं
मोहब्बतों की उम्मीदें अक्सर तोड़ जाती हैं।.
No 4:
धोके की रोशनी में प्यार की आवाज़
दिल को लगती है कुछ फूलों की महक होती है।.
No 5:
धोके की रोशनी से अंधेरा मिलता है
दिल को तस्सली मिलती है मगर दुख मिलता है।.
No 6:

धोके ने छुआ दिल को तन्हा कर के,
इंसानों की मोहब्बतों की सच्चाई पर शक होता है।
No 7:
मुझ पर हक तुमने उस दिन खो दिया था,
जिस दिन तुमने मुझे धोखा दिया था।
No 8:
दीवानगी का सितम तो देखो,
के धोखा मिलने के बाद भी चाहते हैं हम उनको।
No 9:
कुछ लुटकर, कुछ लुटाकर लौट आया हूँ,
वफ़ा की उम्मीद में धोखा खाकर लौट आया हूँ।
No 10:
धोखा देकर ऐसे चले गए,
जैसे कभी जानते ही नहीं थे।
No 11:
देखा है ज़िंदगी में हमने ये आजमा के,
देते हैं यार धोखा दिल के करीब ला के।
No 12:
एक ही अच्छी बात है इन लकीरों में,
धोखा देती हैं पर रहती हाथों में ही है।
No 13:
गलती तुम्हारी नहीं, तुमने मुझे धोखा दिया,
गलती तो मेरी थी जो मैंने तुम्हें मौका दिया।
No 14:
फक्त इंसानियत से फिर भरोसा उठ गया मेरा,
महज़ बस एक इंसान था, कभी जिसने दिया धोखा।
No 15:
किरदार की अज़मत को गिरने न दिया हमने,
धोके तो बहुत खाए, धोका न दिया हमने।
No 16:
जख्म लगा कर उसका भी कुछ हाथ खिला,
मैं भी धोखा खाकर कुछ चालाक हुआ।
No 17:
जब धोका ही था तुम्हारी मोहब्बत,
तो झूठ अपनी लबों को कहने देते।
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Pyar Me Dhoka Shayari
No 1:
गए दिनों की रकाबत को वो भुला न सके,
शरीक-बज़्म थे लेकिन नज़र मिला न सके।
No 2:
अज़ाब-ए-हिज्र के लमहात हम भुला न सके,
दियार-ए-गैर में एक पल सुकून पा न सके।
No 3:

बहुत बादीद न था मसाइल का हल होना,
आना के पाँव से ज़ंजीर हम हटा न सके।
No 4:
ताल्लुकात में हद दर्जी एहतियात रही,
करीब आ न सके वो, मुझे भुला न सके।
No 5:
फरेब खा गए, तब जाकर इन्किशाफ हुआ,
करीब रह के भी हम उन को आज़मा न सके।
No 6:
अब किसी ख्वाब की ताबीर नहीं चाहता मैं,
कोई सूरत पास तसवीर नहीं चाहता मैं।
No 7:
चाहता हूँ कि रफाकत का भरम रह जाए,
अहद-ओ-पैमान की तफसीर नहीं चाहता मैं।
No 8:
हुक्म सादिर है तो नाफ़िज़ भी करो मेरे हज़ूर,
फैसले में कोई ताख़ीर नहीं चाहता मैं।
No 9:
चाहता हूँ तुझे गुफ्तार से काबिल कर लूं,
बात में लहजा-ए- شمशीर नहीं चाहता मैं।
No 10:
मुद्दा है कि मेरा हक मुझे वापस मिल जाए,
तेरे अजीदाद की जगीर नहीं चाहता मैं।
Conclusion
Matlabi rishte dhoka shayari captures the essence of betrayal that often lurks in relationships driven by selfish motives. These poignant verses resonate deeply, revealing the pain of unrequited loyalty and the heart-wrenching realization that love can sometimes wear a mask of deception.
Each couplet becomes a mirror reflecting the turmoil of emotions, where trust shatters and illusions crumble, leaving behind only shards of broken promises. It invites readers to introspect on their own relationships, urging them to distinguish between genuine affection and opportunistic ties.